प्रयास फाउंडेशन कोर्स

(समेकित व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम)

(सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, लोक उपक्रमों के प्रबंधकों एवं उनके सहायक कार्मिकों के लिए विशेष रूप से परिकल्पित समेकित व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम)

(कूट संख्या:पीएफसी/03)

 

[केद्र एवं राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों तथा लोक उपक्रमों के कार्यों की प्रभावशीलता उनके अधिकारियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों की व्यक्तिगत प्रभावशीलता पर निर्भर करती है। उनकी व्यक्तिगत प्रभावशीलता उनके आचार-विचार पर निर्भर करती है। प्रयास फाउंडेशन कोर्स (विभिन्न उपभोक्ता समूहो की आवश्यकतानुसार उनके लिए विशेष रूप से परिकल्पित, विकसित एवं परिमार्जित एक समेकित व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम) का यह विशिष्ट प्रारूप (पीएफसी/03) एक ऐसा अनूठा कार्यक्रम है जो सरकारी विभागों, स्थानीय निकायों एवं लोक उपक्रमों के अधिकारियों/प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के जीवन में लोक सेवा के विभिन्न आयामों पर एक मार्गदर्शित विचार-मंथन एवं स्व-निर्देशित लेखन प्रक्रिया के माध्यम से उनके आचार-विचार में सकारात्मक परिवर्तन, उनकी भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमत्ता में आवश्यक सुधार एवं वाह्य-नियन्त्रित व्यक्तित्व के स्थान पर स्व-उत्प्रेरित, स्वचालित एवं स्व-नियंत्रित व्यक्तित्व का विकास करके शांति एवं आनद के साथ उनके कार्य में सफलता सुनिश्चित करता है। यह उन्हें कठिन से कठिन एवं चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी लोक सेवा के साथ-साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वाह करने में भी सक्षम बनाता है। हमारा जीवन कठिनाईयों एवं चुनौतियों से भरा पड़ा है और किसी भी व्यक्ति को इसे आनदपूर्ण, शांत, स्वस्थ एवं सफल तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए इसे जीने आना चाहिए। यह कार्यक्रम लोक सेवकों को इसके लिए पूरी तरह तैयार करता है। यह कार्यक्रम अत्यंत लचीला, अनौपचारिक एवं सस्ता है जो उनके जीवन की दिशा ही परिवर्तित कर देता है ।)

कार्यक्रम की विशिष्ठता

गृहस्थ आश्रम के मौलिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समर्पित यह छह मासिक समेकित व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम जिसे ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स (पीएफसी 03)’ कहते है, सरकारी (केद्र, राज्य एवं स्थानीय निकाय) अधिकारियों, कर्मचारियों एवं लोक उपक्रमों के प्रबंधकों के जीवन में मौलिक गुणों जैसे सकारात्मक सोच, लोक सेवा एवं स्वस्थ जीवन शैली में रूचि विकसित करने के साथ-साथ उनमें पारिवारिक, संस्थागत, सामाजिक, विधिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिवेश की सम्यक समझ विकसित करके उनके जीवन में शांति एवं प्रसन्नता के साथ सफलता सुनिश्चित करता है। यह प्रतिभागियों को मौलिक मानवीय मूल्यों, नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों और वांछित व्यक्तिगत, पारिवारिक, संस्थागत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवहार से सम्बंधित रुचिकर प्रश्नों पर समूह में उन्मुक्त विचार-मंथन करके उचित-अनुचित का निर्णय स्वयं लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह उन्हें अपने जीवन मे उचित व्यावहारिक परिवर्तन करने के लिए विचार-मंथन द्वारा आम-राय कायम करने के लिए प्रोत्साहित एवं उत्प्रेरित करता है। यह प्रतिभागियों के व्यक्तित्व को इतना दक्ष, स्व-संचालित एवं उत्प्रेरित बना देता है कि वें कठिन से कठिन पारिवारिक एवं लोक सेवा संबंधी परिस्थितियों तथा समस्याओं का समाधान बिना किसी बाहरी सहायता या निर्भरता के स्वयं वस्तु-निष्ट विश्लेषण करके और तार्किक निर्णय लेकर कर सकते हैं। यह उन्हें स्थाई रूप से स्व-सशक्तिकरण करने के लिए उत्प्रेरित करता है।

कार्यक्रम की आवश्यकता

पुरातन भारतीय जीवन दर्शन के अनुसार किसी भी व्यक्ति को अपने जन्म से मृत्यु तक एक शांतिपूर्ण, सफल एवं आनंदपूर्ण जीवन जीने के लिए ब्रह्मचर्य (जीवन यापन के लिए आवश्यक सैध्दांतिक एवं व्यवहारिक ज्ञान तथा कला-कौशल अर्जित करने का समय), गृहस्थ (परिवार संवर्धन एवं अपने पारिवारिक कार्य एवं अपनी नौकरी या पेशे के माध्यम से उसका परिपालन करने का समय), वानप्रस्थ (वन के तरफ प्रस्थान या पारिवारिक या सांसारिक मामलों के क्रमशः दूरी बनाने एवं अन्य अन्य लोगों का मार्गदर्शन करने का समय) एवं संन्यास (पारिवारिक एवं सांसारिक वस्तुओं से पूर्ण अलगाव एवं विरक्ति प्राप्त करके समाज का मार्गदर्शन करने का समय) आश्रमों की निश्चित जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठां, ईमानदारी  एवं सामर्थ्य के अनुसार निभाना चाहिए। ‘प्रयास व्यक्तित्व विकास सेवा प्रा. लि.’ द्वारा आरम्भ किया गया ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ किसी समूह विशेष के प्रतिभागियों की आयु और उनके जीवन के वर्तमान सोपान से उद्देश्य के अनुसार विशेष रूप से परिकल्पित एवं विकसित किया गया कार्यक्रम है जो उनके लिए अत्यंत उपयोगी है। इस कार्यक्रम का यह प्रारूप (पीएफसी 03) सरकारी (केंद्र, राज्य एवं स्थानीय निकाय) अधिकारियों एवं कर्मचारियों तथा लोक उपक्रमों के प्रबंधकों एवं सहायकों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है और अपने आप में समेकित है।

एक सक्षम, सफल, शांतिपूर्ण, संतुष्ठ एवं आनंद से परिपूर्ण जीवन के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ मौलिक गुणों एवं जीवन मूल्यों का विकसित होना आवश्यक है। ये गुण एवं जीवन मूल्य हैं : शारीरिक श्रम की गरिमा में विश्वास, अच्छे स्वास्थ के महत्त्व की समझ एवं स्वस्थ जीवन शैली अपनाने में रूचि, सकारात्मक सोच, पारस्परिक सौहार्द, विश्व-बंधुत्व की भावना, दूसरों की बातों एवं विचारों को ध्यान के सुनने का धैर्य, दूसरों की भावनाओं एवं विचारों को समझने और उनका आदर करने की इच्छा, दूसरों के सामने अपने विचार वस्तुनिष्ट, नम्रतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता, अपने कर्तर्ब्यों एवं जिम्मेदारियों के प्रति सजगता एवं एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में उन्हें पूरा करने की इच्छा, प्रजातान्त्रिक विचारों, सिद्धान्तों एवं प्रक्रियाओं की समझ एवं उनमें विश्वास, सभी धर्मों की एक जैसी मान्यताओं की समझ, उनके प्रति आदर भाव तथा समाज में विविध-धर्मी एवं विविध विचारों वाले लोगों के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में विश्वास, मानवाधिकारों एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता में विश्वास, जीवन में नैतिक मूल्यों के महत्त्व में विश्वास, बुजुर्गों के प्रति आदरभाव एवं उनके अनुभव से सीखने की ललक, स्मरण-शक्ति बढ़ाने के लिए उपयुक्त तकनीक का प्रयोग करना, नियमित अध्ययन एवं जीवनोपयोगी नई चीजें सिखने की प्रवृति, समूह कार्य प्रक्रिया की समझ और समूह में प्रभावी ढंग से कार्य करने की दक्षता। इनके अतिरिक्त प्रतेक व्यक्ति को वर्तमान पारिवारिक, संस्थागत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समस्याओं की अच्छी समझ होनी चाहिए। जबतक उक्त गुणों एवं मूल्यों को व्यक्ति के कार्यशील जीवन के आरम्भ मे ही विकसित न कर दिया जाय, वह अपने पारिवारिक, कार्य/ पेशेवर एवं सामाजिक जीवन में सफल नहीं हो सकता है। वह न तो स्वयं अपने जीवन में प्रसन्न एवं शांत रह पायेगा और न तो दूसरों को ही प्रसन्न रख पायेगा।

अपनी अभिरुचि के विपरीत कार्य-क्षेत्र का चयन, सिमित संख्या में उपलब्ध अच्छी नौकरियों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर पाने की क्षमता का अभाव, जीवन की कठिन समस्याओं एवं कष्टों का सामना करने की क्षमता का अभाव, पलायनवादी सोच, भयंकर भौतिकवाद एवं अति-उपभोक्तावाद, मौलिक मानवीय मूल्यों की समझ की कमी, पारस्परिक मेल-मिलाप में कमी होने के लोगों के अन्दर मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक दूरी का बढ़ना तथा वाणिज्यिक या गैर-वाणिज्यिक संस्थाओं के मानव संसाधन में अल्प-विकसित भावनात्मक,  सामाजिक एवं  नैतिक या आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता के कारण कार्य सम्बन्धी दैनिक समस्याओं का समाधान न कर पाने के कारण संस्थागत उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफलता के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान शोध बताते हैं कि किसी की व्यक्ति की अपनी नौकरी या पेशे में सफलता प्राप्त करने में उसकी मानसिक  बुद्धिमत्ता की भूमिका मात्र 20% होती है और बाकी 80% भूमिका उसके भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता की होती है लेकिन किसी भी शैक्षणिक तथा प्रशिक्षण संस्थान के पास इनके विकास के लिए आवश्यक समय ही नही है। प्रतिष्ठित स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के कुछ छात्रों द्वारा किया गया भयंकर नकारात्मक व्यवहार इसका द्योतक है। उनके विद्यार्थी सरकारी पदों के लिए लोक सेवा आयोगों द्वारा आयोजित परीक्षाओं में भाग लेतें हैं और चयन के बाद कुछ ही वर्ष की नौकरी के बाद भ्रष्ट आचरण करने लगतें है। अतः उन्हें अपने विद्यार्थियों में उक्त गुणों से परिपूर्ण भावनात्मक, सामाजिक एवं नैतिक बुद्धिमत्ता विकसित करनी चाहिए।

कोई भी नियोक्ता किसी ऐसे व्यक्ति को अपने यहाँ प्रबंधक या कर्मचारी के रूप में रखने के बारे में सोच भी नही सकता जो अपने सह्कर्मियो के साथ सहजता से कार्य नहीं कर सकता और कार्य की आवश्यकतानुसार उनका सहयोग नही ले पाता है (कमजोर भावनात्मक बुद्धिमत्ता का द्योतक) और साथ ही भ्रष्ट एवं आत्म-केद्रित भी होता है (कमजोर नैतिक बुद्धिमत्ता का द्योतक) चाहे वह कितना भी उच्च मानसिक बुद्धिमत्ता का धनी क्यों न हो। एक बार गूगल के मुखिया के पूंछा गया कि जिन प्रबंधकों को करोड़ों रूपये का वार्षिक वेतन दिया जाता है उनको आप की सस्था में नौकरी देने के पूर्व लिए जाने वाले साक्षात्कार में क्या प्रश्न पूछे जातें हैं? उन्होंने बताया कि हम उनके मात्र एक प्रश्न पूछते हैं कि उनके जीवन में सबसे बड़ी समस्या क्या और कब आयी और उसका समाधान उन्होंने कैसे किया? उस समय उनकी सोच क्या थी? व्यक्ति की वास्तविक क्षमता का पता विपत्ति के समय ही चलता है।

सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों एवं लोक उपक्रमों के प्रबंधकों एवं अन्य कार्मिकों के व्यक्तित्व के समेकित एवं समग्र विकास की आवश्यकता के सन्दर्भ में वर्तमान व्यक्तित्व विकास प्रक्रिया की वर्तमान कमियों को ध्यान में रखकर ‘प्रयास’ ने इनकी भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमत्ता विकसित करने के लिए विचार-मंथन एवं स्व-लेखन आधारित एक अनूठा समेकित व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम जिसे ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ कहते है, आरम्भ किया है। यह स्व-विश्लेषण, समूह में विचार-मंथन और स्व-निर्देशित लेखन जैसी प्रकियाओं का उपयोग करके उनके अन्दर लोक सेवा की प्रवृति विकसित करता है। यह एक अंशकालीन, लचीला और अनौपचारिक कार्यक्रम है जो प्रतिभागियों के नियमित कार्य में कोई भी बाधा नहीं उत्पन्न करता है। विचार-मंथन सत्र की अवधि, सप्ताह में विचार-मंथन के दिन एवं समय आदि प्रतिभागियों तथा सरकारी संस्था की आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।

इस कार्यक्रम के किसी बैच में प्रवेश पूरा होने और उसके आरंभ किये जाने के तुरंत बाद (प्रारंभिक 15 दिनों के अन्दर) प्रतिभागियों की मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमत्ता के वर्तमान स्तर एवं उनके व्यक्तित्व की अन्य विशिष्टताओं का पता लगाने के लिए उनका व्यक्तित्व परीक्षण, कई समय-सिद्ध मनोवैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से किया जाता है और उनके प्रारंभिक (प्रवेश-पूर्व) व्यक्तित्व का एक खाका (आरंभिक व्यक्तित्व लेखांकन) तैयार किया जाता है और सम्बंधित व्यक्तित्व विकास मार्गदर्शक को प्रतेक प्रतिभागी के व्यक्तित्व की वर्तमान विशिष्टताओं से अवगत करा दिया जाता है। कार्यक्रम के समाप्त होने के एक माह पूर्व (कार्यक्रम समाप्त होने के 15 दिन पूर्व) इस कार्यक्रम में भाग लेने के कारण प्रतिभागियों के व्यक्तित्व में हुए वास्तविक परिवर्तनों का पता लगाने के लिए प्रतेक प्रतिभागी का पुनः व्यक्तित्व रेखांकन परीक्षण किया जाता है और उसके व्यक्तित्व का संशोधित खाका तैयार किया जाता है। ‘प्रयास’ द्वारा प्रतेक प्रतिभागी के व्यक्तित्व के आरंभिक और अंतिम खाके की तुलना करके उसकी एक ‘व्यक्तित्व विकास रपट’  तैयार की जाती है। यह रपट इस कार्यक्रम में भाग लेने के कारण उसके व्यक्तित्व में हुए महत्वपूर्ण परिवर्तनों को इंगित करती है और भविष्य में आवश्यक सुधार के किये कुछ सुझाव भी देती है जिसे सरकार या लोक उपक्रम द्वारा लागू किया जा सकता है।  यह सारी प्रक्रिया डिजिटल माध्यम से होत्ते है। इस कार्यक्रम के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है की इसे सफलतापूर्वक पूरा करने वाले प्रतिभागी अपने जीवन, परिवार, कार्य और समाज की दैनिक समस्याओं का पूरे विश्वास के साथ सामना करने और उनका समाधान करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाय। इससे सरकार की छवि सुधरेगी।

कार्यक्रम का उद्देश्य

इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोक सेवकों में निम्न प्रकार की विशेष क्षमताओं का विकास करना है जो लोक सेवा और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं।

  1. प्रभावी लोक सेवा के लिए इस क्षेत्र की नई घटनाओं, परिस्थितियों, तकनीकों एवं प्रक्रियाओं को समझने और उनसे सीख लेने की प्रवृति।
  2. लोक सेवा और निजी सेवा की प्रवृति के मौलिक अंतर को समझने की क्षमता।
  3. दूसरों के विचारों को पूरी तन्मयता से सुनकर, उनका तार्किक विश्लेषण करके और उनके परिणाम पर विचार करने के बाद अपने विचार दूसरों के सामने तार्किक ढंग से रखने की क्षमता।
  4. जनता की समस्याओं को पूरी तन्मयता से सुनकर, उनका तार्किक विश्लेषण करके उनका त्वरित समाधान करने की क्षमता।
  5. पारिवारिक, संस्थागत एवं सामाजिक जीवन एवं लोक सेवा में सफलता प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त करने की दक्षता।
  6. लोक सेवा में सफलता प्राप्त करने में सहायक परिवेश निर्मित कर पाने की क्षमता।
  7. अपनी ऊर्जा का अपव्यय किये बिना उत्कृष्ट उत्पादकता हेतु अपने समय का उचित प्रबंधन करने की क्षमता।
  8. लोक सेवा कार्य करने में गर्व महसूस करना।

उक्त क्षमताओं के विकसित हो जाने के फलस्वरूप प्रतिभागी का वाह्य-नियंत्रित व्यक्तित्व स्व-उत्प्रेरित, स्व-संचालित एवं स्व-नियंत्रित हो जाता है। इस सकारात्मक परिवर्तन के कारण सरकारों एवं लोक उपक्रमों  द्वारा किये गए प्रयास का प्रभाव काफी बढ़ जाता है और प्रतिभागी के कार्य  का परिणाम उत्कृष्ट हो जाता है।  प्रतिभागियों के परिवार के अन्य सदस्य, संबंधी, मित्र एवं अन्य व्यक्ति जो उनसे दिन प्रति दिन व्यवहार करते है, भी उनके आचार-विचार में सकारात्मक परिवर्तन देखकर काफी प्रसन्न होते है। जनता भी ऐसे लोक सेवकों के कार्य से काफी संतुष्ट होती है और ऐसे लोक सेवक जनप्रिय हो जातें है और उन्हें अपने कार्य से भी संतुष्टि मिलती है।

कार्यक्रम का पाठ्यक्रम

iइस कार्यक्रम के प्रतिभागियों को निम्न विषयों से सम्बंधित रुचिकर प्रश्नों (विचार-विन्दुओं) पर विचार मंथन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उन्मुक्त विचार-मंथन प्रक्रिया प्रतिभागियों के अन्दर जीवन एवं कार्य की व्यावहारिक समस्याओं पर वस्तुनिष्ट एवं तार्किक सोच-विचार करके उनका उचित समाधान करने की क्षमता  विकसित कर देती है। पाठ्यक्रम को प्रतिभागियों से प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर समय समय पर अद्यतन किया जाता है।

  1. लोक एवं निजी सेवाओं की प्रवृति में मौलिक अंतर: लोक सेवा का स्वभाव, निजी सेवा का स्वभाव, लोक सेवा तथा निजी सेवा की प्रवृति में अंतर एवं इसका कार्य शैली एवं आचार-विचार पर प्रभाव।
  2. मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर मानसिक स्थिति या सोच का प्रभाव : हमारी आंतरिक सोच का हमारे स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता पर प्रभाव, सामने आने वाली प्रतेक परिस्थिति में पूर्णतया स्वस्थ, शांत एवं प्रसन्न रहने के लिए अपनी सोच को कैसे ठीक रखें? सकारात्मक सोच, स्व-सुझाव एवं ध्यान द्वारा शरीर की आनुवंशिक संरचना में सकारात्मक परिवर्तन की संभावना।
  3. अपने व्यक्तित्व की विशिष्टत्ताओं को समझने के लाभ : स्वयं को समझने के लिए अपने व्यक्तित्व, अभिरुचि, रुझान एवं अन्य विशेषताओं को वैज्ञानिक तरीके से समझने का महत्त्व और विभिन्न प्रकार की बुद्धिमत्ता के स्तर का महत्व और उसमे सुधार की आवश्यकता, सफलता का मनोविज्ञान, व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया एवं उसका महत्त्व, लोक सेवा में सफलता प्राप्त करने में भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता की भूमिका तथा अपने सकारात्मक एवं सहयोगात्मक व्यवहार से अपने चारों तरफ एक नैसर्गिक वातावरण का निर्माण की संभावना।
  4. व्यक्तित्व विकास के विभिन्न आयाम: पारिवारिक परिवेश, शिक्षण एवं प्रशिक्षण- औपचारिक तथा अनौपचारिक; सतत सीखने एवं स्व-विकास की प्रक्रिया में सहयोगी परिवेश का महत्त्व, अपने कार्य पर अपनी उर्जा के केन्द्रीकरण का लाभ; विद्या एवं बुद्धि  के सामंजस्य की आवश्यकता एवं उसका लाभ,  भावनात्मक  परिपक्वता की प्राप्ति और जीवन में  नैतिक मूल्यों के महत्व की समझ।
  5. व्यक्तिगत सोच एवं व्यवहार: कर्म का सिद्धान्‍त; मानव विकास में कार्य की भूमिका, समय प्रबंधन का महत्त्व; मोबाइल/इन्टरनेट के उपयोग का लाभ एवं हानि और इसके उचित उपयोग का महत्व; असफलता से सफलता की तरफ; जीवन में तनाव के कारक एवं उनसे मुक्ति एवं उसके प्रबंधन के तरीके; नकारात्मक सोच से हानि और सकारात्मक सोच से लाभ; अपने भाग्य का निर्माण, अपरिवर्तनशीलता या रुढ़िवादिता से हानि; खेलभावना विकसित करने के लाभ, जीवन में सफलता प्राप्त करने में सृजनशीलता एवं कल्पनाशीलता की भूमिका एवं खेल-कूद से व्यवहार परिवर्तन; सृजनशीलता; सामाजिक स्वीकार्यता की मानवीय आवश्यकता; व्यक्तिगत व्यवहार में  सहजता एवं  सरलता का महत्त्व,  आर्थिक विकास में उद्यमशीलता का महत्त्व तथा व्यक्ति में प्रबंधकीय, वित्तीय एवं विधिक समझ विकसित करने का महत्त्व।
  6. संस्थागत समूह कार्य-प्रक्रिया: समाज में संस्थाओं की भूमिका, संस्थाओं के स्वभाव एवं प्रकार, सामूहिक कार्य-प्रक्रिया में व्यक्ति की भूमिका, व्यक्तिगत और संस्थागत उद्देश्यों में सामजस्य की आवश्यकता एवं महत्त्व, संस्थागत कार्य परिवेश में भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता की भूमिका और संस्था के वित्तीय स्वास्थ्य एवं प्रतिष्ठा पर इसका प्रभाव।
  7. निर्णय प्रकिया में वस्तुनिष्ठता की भूमिका: समस्याएं एवं मानव जीवन की गुणवत्ता, समस्या-समाधान प्रक्रिया, निर्णय क्षमता की आवश्यकता, वस्तुनिष्ठता का स्वभाव, निर्णय की गुणवत्ता में वस्तुनिष्ठता की भूमिका तथा तार्किक निर्णयों का हमारे जीवन पर प्रभाव ।
  8. धार्मिक मान्यताएं एवं व्यवहार: विभिन्न धर्मों की मौलिक मान्यताएं में समानता की समझ का लाभ; प्रशासनिक आचरण में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता एवं महत्त्व, विश्व बंधुत्व की अवधारणा; मानव समानता का आधार; मानवाधिकार; नैतिक आचरण; भ्रष्टाचार न करना; किसी को हानि न पहुचाना, सामाजिक समरसता एवं शान्ति के लाभ।
  9. सामाजिक संबंध एवं व्यवहार: मानव एक सामाजिक प्राणी; परिवारिक सम्बन्ध; सगे संबधी, सामाजिक संबंध; व्यक्ति की अच्छाई में विश्वास; मित्रता; भ्रष्टाचार का समाज विशेषकर ग़रीबों पर कुप्रभाव, धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों का प्रभाव, सामाजिक सुधार की आवश्यकता एवं उसके लाभ।
  10. आर्थिक परिवेश एवं व्यवहार: आर्थिक सुरक्षा में बचत एवं निवेश की भूमिका; आर्थिक विषमता का सामाजिक समरसता पर प्रभाव; बेरोजगारी के कारण एवं उनका समाधान, व्यक्ति में असंतोष के कारण एवं उनका समाधान; विभिन्न मुद्राएँ; अंतर्राष्ट्रीय व्यापार,  अति एवं विकृत उपभोक्तावाद के नुकसान, सुरक्षित भविष्य के लिए  बचत का सही उपयोग का महत्व और पैसे के महत्त्व की सीमा।
  11. राजनैतिक प्रणाली एवं वर्तमान परिवेश: वर्तमान प्रजातांत्रिक परिवेश; मतदान प्रक्रिया; केद्र एवं राज्य सरकारों का गठन; जिम्मेदार नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य,  प्रशासन की गुणवत्ता में जनता की जागरुकता की भूमिका, विविध-धर्मी समाज में प्रशासन में धर्मनिरपेक्ष विचारों एवं आचरण का महत्त्व।
  12. विधिक व्यवस्था : क़ानून व्यवस्था, अपराध नियंत्रण, अपराध का MANIOVYGYAमनोविज्ञान, बेरोजगारी एवं अपराध, सिविल प्रक्रिया संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता, क़ानून व्यवस्था की वर्तमान समस्याएं, चुनौतियां एवं समाधान ।
  13. सामान्य ज्ञान: शासन व्यवस्था; देश एवं राज्य; भाषाएँ एवं उनका उपयोग; अर्थ-व्यवस्था में कृषि की भूमिका; स्वच्छ पर्यावरण का महत्व, प्रदूषण के प्रकार, स्वाथ्य एवं बीमारी नियंत्रण; संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का महत्त्व; योग एवं प्राणायाम का महत्त्व; अच्छी नीद का महत्त्व।
  14. अन्य विषय : प्रतिभागियों की विशेष आवश्यकता के अनुसार अन्य उपयोगी विषयों पर चर्चा की जाती है।

समय समय पर प्रतिभागियों से प्राप्त फीडबैक (प्रतिपुष्टि) को ध्यान में रखकर उक्त पाठ्यक्रम में समुचित परिवर्तन किया जाता है ताकि इसकी उपादेयता बनी रहे ।

कोर्स संचालन एवं प्रबंधन

isइस कार्यक्रम का संचालन एवं प्रबंधन प्रशिक्षित ‘व्यक्तित्व विकास मार्गदर्शकों’ या इच्छुक सरकारी संस्थाओं द्वारा अपने अधिकारियों या प्रबंधकों के माध्यम से अपने यहाँ हमारे मार्गदर्शन में किया जाता है।  सम्बंधित सरकारी विभाग या लोक उपक्रम अपने यहाँ इस कार्यक्रम के संचालन एवं प्रबंधन के लिए एक बैच के लिए प्रशिक्षण हेतु कम से कम तीन अधिकारियों या प्रबंधकों को नामित कर सकता है। हम उन्हें ‘व्यक्तित्व विकास मार्गदर्शक’ की भूमिका का निर्वहन करने के लिए निशुल्क प्रशिक्षण देतें हैं।  दो अधिकारी या प्रबंधक स्थानापन्न रूप में उपलब्ध रहते हैं ताकि यदि किसी कारणवश किसी बैच का संचालन कर रहा अधिकारी इसे चलाने में असमर्थ हो तो दूसरा अधिकारी या प्रबंधक इसका संचालन विना किसी व्यवधान के जारी रख सके। स्थानान्तरण एक कारण हो सकता है जो सरकारी विभागों में एक सामान्य प्रक्रिया है। अपने अधिकारियों, प्रबंधकों या कर्मचारियों के लिए इस कोर्स का संचालन एवं प्रबंधन करने के इच्छुक सरकारी संस्थाओं को हमारे साथ एक ‘सहमति पत्र’ पर हस्ताक्षर करना पड़ता है। सहमति पत्र में दोनों पक्षों (प्रयास तथा इस कार्यक्रम को चलाने के इच्छुक व्यक्ति या संस्था) के कर्तव्य एवं जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से इंगित की गई है। ‘प्रयास’ की जिम्मेदारी समय समय पर समुचित तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करना और इसे चलाने वाली सरकारी संस्था की जिम्मेदारी इसके संचालन के सम्बंधित सारे कार्यों का निर्वहन करना होता है। आपसी सहमति से इसकी शर्तों में परिवर्तन किया जा सकता है। इसका प्रारूप इस वेबसाइट के ‘सहमति प्रपत्र’ से सम्बंधित अनुभाग में उपलब्ध है जिसे डाउनलोड किया जा सकता है।

गुणवत्ता नियंत्रण

कार्यक्रम के दौरान निश्चित अंतराल एवं इसके अंत में प्रतेक प्रतिभागी एवं कोर्स का संचालन करने वाले व्यक्तित्व विकास मार्गदर्शक से कार्यक्रम को चलाने के तरीकों, चर्चा बिन्दुओं और कोर्स की उपादेयता के बारे में लिखित सुझाव लिए जाते हैं जिन्हें वह कोर्स के प्रतिभागियों के प्राप्त करके और उनपर अपने सुझावों के साथ ‘प्रयास’ को प्रेषित करता है। उनपर सम्यक विचार करके चालू कार्यक्रम एवं अगले कार्यक्रम में आवश्यक सुधार किया जाता है। बदलती आवश्यकता के अनुसार ’प्रयास’ द्वारा school इस कार्यक्रम में आवश्यक सुधार किये जातें है और सरकारी संस्थाओं द्वारा नामित अधिकारियों या प्रबंधकों को समय समय पर निशुल्क पुनः प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि कार्यक्रम की गुणवत्ता बनी रहे।

कार्यक्रम की अवधि

इस कार्यक्रम की सामान्य अवधि 6 माह है जिसके अंतर्गत सप्ताह में 6 दिन प्रतिदिन 90 मिनट के विचार-मंथन सत्र आयोजित किये जातें हैं। इस अवधि को प्रतिभागियों एवं इसे संचालित करने वाले ‘व्यक्तित्व विकास मार्गदर्शकों और संस्थाओं की अपनी आवश्यकतानुसार विचारमंथन सत्र की अवधि और सप्ताह में इसके संचालन के दिनों में परिवर्तन करके इसकी अवधि में परिवर्तन किया जा सकता है जिसके लिए ‘प्रयास’ की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी।

 

कोर्स परिकल्पना एवं निर्देशन

इस कोर्स के परिकल्पक एवं निर्देशक डॉ. राम चन्द्र राय हैं  जो ‘भारतीय रेलवे लेखा सेवा’ जो एक केद्रीय सिविल सेवा है, के सेवा निवृत अधिकारी हैं। उन्होंने अपनी स्कूल एवं कॉलेज की शिक्षा पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण इलाके से पूरा करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से भौतिकी में बीएससी (आनर्स), एमबीए तथा पीएचडी की उपाधि प्राप्त किया। उसके बाद 7 वर्ष तक एक सरकारी औद्योगिक परामर्शदाता संस्था में वित्त एवं प्रबंध परामर्शदाता के रूप में कार्य करने के बाद केद्रीय सिविल सेवा में चयनित होकर भारतीय रेलवे लेखा सेवा में 32 वर्ष कार्य करके भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव के समकक्ष पद (प्रमुख वित्त सलाहकार) से सेवा निवृत होकर इस समय ‘प्रयास’ के साथ  समेकित व्यक्तित्व विकास कार्य हेतु पूरी तरह समर्पित हैं।  वित्त एवं प्रबंधन परामर्शदाता के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने नोएडा के वित्त पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय रेलवे की सेवा करते हुए इन्होने नेशनल अकादमी ऑफ़ इंडियन रेलवे वडोदरा में प्रोफेसर एवं सीनीयर प्रोफेसर के रूप में भी सात वर्ष तक कार्य किया है और इन्हें प्रतिभागियों के व्यवहार परिवर्तन में सक्षम पाठ्यक्रमों की परिकल्पना और निर्देशन का लम्बा अनुभव है। यह कार्य वें एक समाज सेवा की भावना से कर रहें हैं।

इस कार्यक्रम का मौलिक दर्शन

इस कार्यक्रम का मौलिक दर्शन मानव व्यवहार का यह मौलिक तथ्य है कि यदि किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा किसी व्यक्ति को अपने सोच-विचार एवं व्यवहार को परिवर्तित करने के लिए निर्देशित किया जाय तो वह अहंकारवश उसका यथासंभव प्रतिरोध करता है और इसके लिए जल्दी तैयार नहीं होता है। यदि वह किसी मजबूरी में या भयवश वह इसके लिए तैयार भी हो जाता है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन CHIRSTHAAIEEचिरस्थायी नहीं होता और सम्बंधित भय या मजबूरी के समाप्त होते ही वह पुनः अपने पुराने व्यवहार पर लौट आता है।  परन्तु इसके विपरीत यदि वह स्वयं या समूह में अन्य लोगों के साथ चर्चा, अन्वेषण और विश्लेषण से स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुचता है कि अपने आचार-विचार में वांछित परिवर्तन से उसे लाभ होगा और इस कारण स्वेच्छा से वह अपने आचार-विचार में परिवर्तन करता है तो यह परिवर्तन स्थायी होता है। चूँकि इस कार्यक्रम में विचार-मंथन सत्र का संचालन करने वाला व्यक्तित्व विकास मार्गदर्शक प्रतिभागियों को एक किसी विषय विशेष के विभिन्न आयामों पर समूह में विचार मंथन करके वांछित व्यवहार के संदर्भ में एक आम-राय कायम करने के लिए उत्प्रेरित करता है अतः इस बात की संभावना अधिक होती है कि उस समूह के सदस्य आम-सहमति से निर्धारित व्यवहार को अपने जीवन में अपनाने का निर्णय स्वेच्छा से लें और वास्तव में अपने व्यवहार में वैसा परिवर्तन ले आयें। एक बार व्यक्ति के सोच एवं व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आ जाय तो अपनी रूचि के क्षेत्र में उसके सफल होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। किसी भी सस्था में कार्यरत कर्मचारियों और प्रबंधकों के आचार-विचार में यदि सकारात्मक परिवर्तन हो जाय तो उस संस्था का भविष्य ही बदल जाएगा। यह बात सरकारी संस्थाओं या लोक उपक्रमों पर भी लागू होती है।

कार्यक्रम से प्रतिभागियों को संभावित लाभ

इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूर्ण करने वाले प्रतिभागियों को होने वाले संभावित लाभों में, अपने व्यक्तित्व की बेहतर समझ, लोक सेवा का महत्त्व, लोक प्रतिष्ठा का महत्त्व, आत्म-अनुशासन में सुधार, बेहतर समय-प्रबंधन, अपने परिवार के सदस्यों, सगे-संबधियों, मित्रों और अपने सहकर्मियों के साथ बेहतर सम्बन्ध,  सरकारी सेवा में सफलता, भविष्य के जीवन का बेहतर प्रबंधन, आनंद तथा सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि आदि शामिल हैं। यह कार्यक्रम प्रतिभागी के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और जीवन की कठिन से कठिन समस्याओं और चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम बनाता है। अतः इस कार्यकर्म में अपने अधिकारियों या प्रबंधकों एवं कर्मचारियों को नामित करने वाली सरकारी संस्थाओं की उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है और प्रशासन की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है। हमारा जीवन विभिन्न समस्याओं, कठिनाईयों और चुनौतियों के भरा होता है और यदि हम बिना अपना संयम खोये इनका समाधान कर लें तो हम न केवल अपने कार्य में सफल होते हैं बल्कि संतुष्ट, प्रसन्न और शांत भी रहतें हैं। यह कार्यक्रम इसमें सहायता करता है और जनता की दृष्टि में सम्बंधित सरकारी अधिकारी एवं सरकार की छवि काफी अच्छी हो जाती है।

कार्यक्रम का शुल्क

वर्तमान में इस कार्यक्रम का कुल शुल्क मात्र 5000 (पांच हजार) रूपये है। इसका 30 % ‘प्रयास’ को देय है। सरकारी विभाग या लोक उपक्रम द्वारा बाकी 70% में से इन कोर्स का संचालन करने वाले अधिकारियों या प्रबंधकों को मानदेय आदि दिया जा सकता है। यदि किसी कारणवश कार्यक्रम की अवधि बढ़ती है तो उसी अनुपात में कुल मार्गदर्शन शुल्क भी बढ़ जाएगा।  भुगतान का तरीका बातचीत से तय किया जा सकता है।

इस कार्यक्रम को कैसे आरम्भ करें?

अपने अधिकारियों/प्रबंधकों और कर्मचारियों के लिए इस कार्यक्रम का संचालन तथा प्रबंधन करने के इच्छुक सरकारी संस्था इस वेबसाइट से पजीकरण फॉर्म एवं नमूना सहमति पत्र  डाउनलोड करके और हमसे सीधे चर्चा करके उसे भरकर और हस्ताक्षर करके इस कार्यक्रम का संचालन करा सकती है।