एफएक्यू /02
‘प्रयास’ द्वारा व्यक्तित्व परीक्षण, रेखांकन, परामर्श एवं विकास संबंधी सेवाओ के बारे प्रायः पूंछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न संख्या 1: व्यक्तित्व क्या होता है?
उत्तर: व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके वर्तमान व्यवहार, भावनाओं/संवेदनाओं, उत्प्रेरण और आचार-विचार प्रक्रिया का संमिश्रण होता है जो उसे परिभाषित और अन्य व्यक्तियों से उसे अलग करता है। दूसरे शब्दों में यह उसकी प्रकृति या गुण जो उसके चरित्र या जीवन की विभिन्न घटनाओं या परिस्थितियों के विरुद्ध उसकी प्रतिक्रिया को नियंत्रित करतें हैं, का सम्मिश्रण होता है। इसे व्यक्ति के विशिष्ट व्यवहार, मानसिक संचेतना और संवेदनात्मक प्रवृति जैसे तत्व जो जैविक कारणों से विकसित और पर्यावरण के सम्बंधित कारकों से प्रभावित होतें हैं, के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। चूँकि व्यक्ति के चारों तरफ का परिवेश स्थिर नहीं होता है और सतत बदलता रहता है, उसका व्यक्तित्व भी परिवेश द्वारा समय-समय पर किये जा रहे हस्तक्षेप के अनुसार समय के साथ बदलता और विकसित होता रहता है। परन्तु यहाँ पर संज्ञान में लेने वाली बात यह है कि व्यक्ति के जीवन में अनुभव से विकसित मौलिक विश्वास, व्यवहार विचार ही किसी भी घटना के प्रति उसकी प्रतिक्रियां के कारक होते हैं।
यद्यपि व्यक्तित्व की कोई सर्वमान्य परिभाषा नही है, इसके अधिकाँश सिद्धांत उत्प्रेरण और व्यक्ति का अपने परिवेश के साथ लेनदेन पर अपना ध्यान केद्रित करते हैं। अतः हमारा व्यक्तित्व इन सभी विशेषताओं और चरित्र का योग होता है और यह व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों की तुलना में विशिष्ट बनाता है।
यदि हम अपनी विशिष्टताओं पर ईमानदारी से मनन करके उन्हें सूचीबद्ध करें तो हम अपने व्यक्तित्व को कुछ हद तक समझ सक्रतें हैं। हम संवेदनशील, दूसरों का ध्यान रखने वाले, हठी, दृढ़प्रतिज्ञ, उंची आकांक्षा रखने वाले, परिश्रमी और विश्वशनीय हो सकतें हैं। वाह्यमुखता, अंतर्मुखता, विचारों का खुलापन, कार्य के प्रति ईमानदारी, तक समझ सकतें हैं। दूसरों के विचारों की स्वीकृति और असंयत व्यवहार भी ऐसे पांच मुख्य गुण हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं ।
व्यक्तित्व मनोविज्ञान विभिन्न व्यक्तियों तथा व्यक्ति-समूहों के व्यक्तित्व की समानता और विषमता का अध्ययन करता है। ‘प्रयास’ मात्र अपने पास आने वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व PAREEपरीक्षण, रेखांकन में ही लिप्त नहीं है बल्कि इस दौरान पाई गई कमजोरियों को भी नाम-मात्र के सेवा शुल्क पर दूर भी करता है ।
प्रश्न संख्या 2: बुद्धिमत्ता क्या होती है?
उत्तर : किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता के स्तर से तात्पर्य उसकी विभिन्न प्रकार की क्षमताओं जिसमें तार्किक विश्लेषण, नियोजन, समस्या समाधान और जीवन की कठिन से कठिन तथा जटिल परिस्थितियों का संतोषजनक तरीके से सामना करने की क्षमता शामिल है, की मात्रा से है। ‘बुद्धिमत्ता’ एक ऐसा विषय है जिसपर काफी शोध किया गया है और इस विषय पर विवाद भी बहुत हैं। यह तार्किक विश्लेषण, समझ, आत्म-ज्ञान, नियोजन, सृजनशीलता, आलोचनात्मक सोच और समस्या समाधान की क्षमता प्रदर्शित करती है। सामान्यतया बुद्धिमत्ता को किसी सूचना के सार और उसकी उपयोगिता को समझकर उससे प्राप्त ज्ञान को जीवन की वास्तविक समस्याओं का समाधान हेतु प्रयोग करने की क्षमता के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन की जमीनी समस्याओं का उचित समाधान न कर पाए तो उसे बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता है।
बुद्धिमत्ता को व्यावहारिक, सृजनात्मक और विश्लेषणात्मक बुद्धिमत्ता में विभाजित किया जा सकता है। इसे मानसिक, सामाजिक, संवेदनात्मक या भावनात्मक, और आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमत्ता में भी विभाजित किया जा सकता है। किसी भी संस्था का नेतृत्व करने वाले लोगों (उच्च प्रबंधन के सदस्यों) के लिए ऊँचें स्तर की सामाजिक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है जिसका तात्पर्य विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों की जटिलता एवं व्यक्तियों के बीच परस्पर संबंधों की समुचित समझ और किसी परिस्थिति विशेष में कैसा व्यवहार किया जाय की सम्यक समझ से है। दूसरी तरफ संवेदनात्मक या भावनात्मक बुद्धिमत्ता स्वयं एवं दूसरों की संवेदनाओं या भावनाओं को समझकर उचित व्यवहार करने और दूसरों के साथ मजबूत सम्बन्ध बना लेने और स्वयं एवं दूसरों की भावनाओं पर नजर रखकर परिस्थति के अनुसार अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख पाने की क्षमता दर्शित करती है। आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति की बुद्धिमत्ता के मूल में होती है क्योकि यह उसे अपने दैनिक व्यवहार के गलत या सही या उचित या अनुचित या नैतिक या अनैतिक होने का मापदंड प्रदान करती है और एक दिशासूचक यंत्र की तरह कार्य करती है। जीवन में सफलता के लिए विभिन्न प्रकार की बुद्धिमत्ताओं में समुचित तालमेल का होना आवश्यक है।
यदि हम किसी व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की बुद्धिमत्ता का आकंलन कर सकें तो मानसिक बुद्धिमत्ता, जो सामान्यतया आनुवंशिक होती है, को छोड़कर अन्य प्रकार की बुद्धिमत्ता के विकास के लिए उचित रणनीति बना सकतें हैं और उसके व्यक्तित्व का समेकित विकास सुनिश्चित करके उसे इतना सक्षम बना सकतें हैं कि वह अपने जीवन में वाछित सफलता शांति और आनंद के साथ प्राप्त कर सकता हैं। ‘प्रयास‘ वैज्ञानिक विधियों द्वारा अपने उपभोक्ताओं के व्यक्तित्व की विसंगतियों को चिन्हित करके उनकी भावनात्मक एवं आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमत्ता का नियोजित विकास में पूरे मनोयोग के लगा हुआ है।
प्रश्न संख्या 3: व्यक्तित्व रेखांकन क्या होता है?
उत्तर: व्यक्तित्व रेखांकन एक ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत समुचित मनोंवैज्ञानिक उपकरणों या प्रश्नावलियों के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का गहन परीक्षण करके उसकी विभिन्न प्रकार की बुद्धिमत्ताओं के वर्तमान स्तर, गुणों, विचारों, जीवन मूल्यों, विशिष्टताओं, क्षमताओं और कमियों का विश्लेषण, रेखांकन एवं मूल्यांकन करके उसके व्यक्तित्व का एक समेकित रेखाचित्र बनाया जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उपयोग किये जाने वाले मनोवैज्ञानिक परीक्षण उपकरण isइस उद्देश्य से शोध करके विकसित किये गयें हैं कि सम्बंधित व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं के बारे में आवश्यक एवं विश्वसनीय सूचनाएं वैज्ञानिक तरीके से प्राप्त की जा सकें और उसके व्यक्तित्व का समेकित विकास सुनिश्चित किया जा सके। व्यक्तित्व परीक्षण की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए इन उपकरणों का उपयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक किया जाता है। जिस ईमानदारी से व्यक्ति विभिन्न प्रश्नों का उत्तर देता है उसका इस पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता के सन्दर्भ में बहुत महत्व है। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर असत्य या गोलमटोल जबाब देता है तो वह अपने व्यक्तित्व के वास्तविक रूप से परिचित नहीं हो सकता और एक तरह से वह स्वयं को ही धोखा दे रहा होता है।.
किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के समेकित विकास के बारे में कोई भी रणनीति बनाने के पूर्व उसके व्यक्तित्व का सही रेखांकन करना आवश्यक है। अतः व्यक्तित्व निर्धारण के दोनों सोपान यानी परीक्षण और परीक्षण के परिणाम के ब्याख्या की वस्तुनिष्ठता सुनिश्चित करना आवश्यक है। ‘प्रयास’ विभिन्न आयु वर्ग से व्यक्तित्यों के व्यक्तित्व परीक्षण, रेखांकन, निर्धारण, परामर्श एवं विकास कार्य मे संलग्न है।
प्रश्न संख्या. 4: व्यक्तित्व निर्धारण के क्या लाभ हैं?
उत्तर : व्यक्तित्व निर्धारण प्रक्रिया आत्म-विश्लेषण एवं अपने व्यक्तित्व को समझने की एक महत्वपूर्ण यात्रा है क्योकि यह हमें अपनी क्षमताओं एवं कमजोरियों, हमारे अन्दर तनाव या अंतर्द्वन्द पैदा करने वाली परिस्थितियों या चुनौतियों को जानने के साथ-साथ अपने आस-पास के लोगो के साथ हमारे व्यवहार की प्रवृति एवं अपने भविष्य के नियोजन की हमारी अपनी क्षमता का पता लगाने में सहायता करती है। एक अंतर्दृष्टि वाली व्यक्तित्व प्रोफाइल संबंधित व्यक्ति के जीवन के सोपान एवं उद्देश्य के अनुसार एक लाभप्रद व्यक्तित्व विकास रणनीति बनाने में सहायता करती है क्योकि यह उस समय की उसकी कमजोरियों एवं क्षमताओं को इंगित कर देती है। एक कार्यशील या नौकरीपेशा व्यक्ति के सन्दर्भ में सम्बंधित संस्था में बेहतर परिणाम के लिए यह एक दूसरे के पूरक व्यक्तित्व वाले कर्मचारियों या अधिकारियों का एक प्रभावशाली कार्य-दल बनाने में भी सहायक होती है। उद्यमिता में अभिरुचि रखने वाले व्यक्ति इसके लिए आवश्यक कौशल का विकास कर सकतें हैं। अतः व्यक्तित्व निर्धारण न केवल बेहतर शैक्षणिक परिणाम बल्कि बेहतर नौकरी या पेशागत परिणाम के लिए समुचित व्यक्तित्व विकास कार्यकर्म बनाने में सहायक तो होती ही है और इसी के साथ संबंधित व्यक्तियों के जीवन में शांति एवं आनद भी लाती हैं। अतः सभी को अपने व्यक्तित्व का निर्धारण करवाना चाहिए। ‘प्रयास’ व्यक्तित्व निर्धरण एवं विकास कार्य में संलग्न है।
प्रश्न संख्या. 5: व्यक्तित्व विकास क्या होता है? इसके क्या सोपान होतें हैं?
उत्तर : किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसकी माता के गर्भ में आने के बाद से ही बनना या रूप लेना आरम्भ हो जाता है और जन्म के बाद उसके पूरे जीवन काल में उसकी आयु के साथ-साथ जीवन की परिस्थितियों के अनुसार विकसित या परिवर्तित होता रहता है। अतः यह गर्भ से श्मशान तक चलने वाली प्रक्रियां है।
व्यक्तित्व मनोविज्ञान के एक प्रसिद्ध फ़्रांसिसी विद्वान् जीन पाइगेट द्वारा प्रतिपादित ‘संचेतना विकास के सिद्धांत’ के अनुसार किसी भी बच्चे की आयु के अनुसार उसके व्यक्तित्व के विकास के मुख्यतः चार चरण होतें हैं। प्रथम चरण दो वर्ष तक की आयु तक होता है और उसे ‘सेंसोरीमोटर’ (इन्द्रियागामक) चरण कहते है। द्वितीय चरण, जो 2 से 7 वर्ष तक की आयु की अवधि में क्रियाशील रहता है, को ‘संक्रियात्मक-पूर्व’ चरण करते है । तृतीय चरण, जो 7 से 11 वर्ष तक की आयु तक रहता है, को ‘मूर्त-संक्रियात्मक’ चरण कहतें हैं। चतुर्थ चरण, जिसे ‘औपचारिक संक्रियात्मक’ कहतें है, 11 वर्ष से 15 वर्ष तक रहता है।
रसियन मनोवैज्ञानिक लेव एस व्याएगोतस्की बाल-विकास के सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत को प्रतिपादित करतें हैं। उनके अनुसार किसी बच्चें के व्यक्तित्व विकास में सामाजिक अन्तःक्रिया, भाषा एवं संस्कृति की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। भाषा वाह्य जगत से संपर्क बनाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम होती है। इस सन्दर्भ में वें सामाजिक वाक्, निजी वाक् एवं शांत वाक् की बात करतें हैं। एक सीमा के बाद प्रतेक बच्चे को किसी न किसी व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता होती है। सहायता देने वाला व्यक्ति संबंधित क्षेत्र में उससे ज्यादा ज्ञान रखता है भले उसकी आयु कम oहो। ऐसे लोगों में बच्चें के माता-पिता, इसकी देखभाल करने वाला व्यक्ति, मित्र आदि शामिल हैं। पाईगेट विकास प्रक्रिया एवं परिणाम को सारर्भौमिक मानतें है जबकि व्याएगोतस्की के अनुसार बच्चे के व्यक्तित्व के विकास पर उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश का काफी प्रभाव पड़ता है।
अमेरिकन मनोवैज्ञानिक लारेंस kolbergकोलबर्ग बच्चे के नैतिक विकास के सिद्दांत का प्रतिपादन करतें हैं। उनके अनुसार किसी भी द्वन्द या दुविधा वाली स्थिति में सही दिशा का निर्णय लेने में नैतिक मापदंड सहायक सिद्ध होतें है और उच्च मानसिक स्थिति में समाज द्वारा निर्धारित किये जातें है। किसी भी उचित या अनुचित निर्णय के पीछे का तर्क व्यक्ति की अपनी मानसिक परिपक्वता एवं सामाजिक मानकों पर निर्भर करता है। नैतिक विकास तीन चरण होतें हैं : पूर्व-पारम्परिक, पारम्परिक एवं उत्तर पारंपरिक। प्रतेक चरण में दो दो स्तर होतें हैं। पूर्व-पारम्परिक चरण की नैतिकता 9 वर्ष तक के बच्चे में होती है। इस चरण के पहले स्तर की नैतिकता का कारण मात्र अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन न करने की स्थिति में दंड पाने का भय मात्र होता है जिसके आधार पर बच्चा किसी कार्य को गलत या सही मानता है। इस चरण की नैतिकता के दूसरे स्तर पर बच्चा अपने व्यक्तिगत लाभ को ध्यान में रखकर सही या गलत का निर्णय लेता है। जिस कार्य के उसे ईनाम मिलता है उसे वह उचित मानता है। इस निर्णय के केद्र में उसका अपना निजी स्वार्थ होता है। नैतिकता के दूसरे यानि पारंपरिक चरण के पहले स्तर पर नैतिकता का निर्णय दूसरों की दृष्टि में अपनी अच्छी या बुरी छवि (अच्छा बच्चा या बुरा बच्चा या अच्छा नंबर) के आधार पर किया जाता है। इस स्तर पर सामाजिक स्वीकार्यता या अपेक्षाओं या सम्बन्धों पर खरा उतरने की इच्छा ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। इस चरण के द्वितीय स्तर पर नैतिकता का मतलब सामाजिक मापदंडों पर खरा उतरना एवं क़ानून-व्यवस्था का सम्मान करना और सामाजिक परम्पराओं एवं सरकारी नियमों या कानूनों का पालन करना होता है। इनके उलंघन पर सामाजिक वहिष्कार या दंड का प्रावधान होता है। नैतिक विकास के तृतीय चरण यानि उत्तर-पारंपरिक चरण के पहले स्तर पर सामाजिक अनुबंध एवं व्यक्तिगत अधिकार नैतिकता के आधार पर जातें है। अतः सामाजिक एवं कानून-व्यवस्था के साथ-साथ मानव अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्व भी बढ़ जाता है और दोनों के बीच संतुलन बैठाने की मांग भी उठने लगती है। उदाहरण स्वरुप सामन्यतया किसी भी चौराहे लाल बत्ती को पार करना यातायात नियमों का उलंघन होता होता है लेकिन यदि कोई गंभीर रोगी एम्बुलेंस या किसी अन्य वाहन से अस्पताल जा रहा हो तो उसका लाल बत्ती को पार करता उचित होगा क्योकि यहाँ पर व्यक्तिगत जरुरत सामाजिक नियम या व्यवस्था से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। नैतिक विकास का अंतिम स्तर उत्तर-पारंपरिक चरण का दूसरा स्तर है जहां सारर्भौमिक नैतिकता का प्रश्न पैदा हो जाता है और वह कानून व्यवस्था से काफी ऊपर होती है। इस सन्दर्भ में kolbergकोलबुर्ग का यह अनुमान था कि मुश्किल से 10 से 15 प्रतिशत लोगों में उत्तर-पारंपरिक चरण की नैतिकता विकसित हो पाती है। पारम्परिक चरण तक की नैतिकता तो सामान्यतया अधिकाँश समाजों में मिल जाती है परन्तु मानवाधिकार एवं सारर्भौमिक नैतिकता काफी कम मिलती है।
उपरोक्त व्यक्तित्व विकास के सिद्धांत ही मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक या नैतिक बुद्धिमता के मूल श्रोत हैं जिसकी बात एक वयस्क के व्यक्तित्व के विकास के संदर्भ में की जाती है। अतः यह स्पष्ट है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके जन्मजात स्वभाव और समय के साथ बदलते उसके परिवेश के बीच व्यवहार की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप क्रमशः विकसित या परिवर्तित होता रहता है और धीरे धीरे उसका एक विशिष्ट चरित्र बन जाता है। बच्चे का मूल स्वभाव आनुवांशिक कारकों के बनता है और वह उसी के अनुसार अपने वाह्य जगत को देखता और समझता है। कुछ आनुवांशिक तत्व मष्तिष्क के तंतुओं को प्रभावित एवं नियंत्रित करते है जिसके कारण व्यवहार नियंत्रित होता है।
व्यक्तित्व का .दूसरा महत्वपूर्ण अंश बच्चे के विशिष्ट परिवेश के प्रभाव से बदलने वाला भाग होता है। अधिकाँश मनोवैज्ञानिक इससे सहमत हैं कि व्यक्ति का आनुवांशिक स्वभाव और उसके परिवेश का संयुक्त प्रभाव उसके व्यक्तित्व के विकास की गति को सबसे अधिक प्रभावित करता है। कभी कभी व्यक्ति का मूल चरित्र जो आनुवांशिक कारकों पर निर्भर करता है, को उसका स्वभाव भी कहते है।
एक आयु प्राप्त कर लेने के बाद प्रतेक व्यक्ति अपने जीवन के उस सोपान की आवश्यकताओं को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के उद्देश्य से अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहता है और इसके लिए प्रभावी तरीकों को ढ़ूढ़ता है। प्रतेक व्यक्ति की अपनी कुछ विशेष आदतें, गुण, क्षमताएं एवं आचार-विचार होतें हैं जो उसे अन्य व्यक्तियों की तुलना में विशिष्ट एवं अनूठा बनाते हैं। इसके बावजूद प्रतेक व्यक्ति अपनी शिक्षा, नौकरी या पेशे में उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए अपने व्यक्तित्व में वांछित सुधार लाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है। यदि आप सोचते हैं कि प्रभावी व्यक्तित्व का तात्पर्य सुन्दर एवं आकर्षक शरीर एवं पहनावे एवं भाव-भंगिमा से है तो आप बिलकुल गलत हैं। व्यक्तित्व एक काफी वृहद् अर्थ वाली अवधारणा है जिसमे शारीरिक, मानसिक एवं परा-मानसिक क्षमताओं का समावेश होता है। किसी भी क्षेत्र में सफलता के सन्दर्भ में व्यक्ति की मानसिक, संवेदनात्मक एवं नैतिक क्षमताएं उसकी शारीरिक क्षमताओं से ज्यादा महत्व रखती हैं। हम किसी भी क्षेत्र को लें, चाहे वह शिक्षा हो या साक्षात्कार हो या दैनिक कार्य का स्थल हो या उद्यमिता हो,, हमारी सफलता में हमारे व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण होता है कि आप विभिन्न चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना कैसे करते हैं या सफलता प्राप्त करने के बाद आप का व्यवहार कैसा होता है। अब प्रश्न यह है कि हम अपने व्यक्तित्व का विकास किस प्रकार करें कि हम अपने पसंद का भविष्य बना सकें? क्या हम अपने जीवन के मालिक या नियंत्रक बन सकतें हैं? यदि हाँ तो कैसे?
अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों एवं समस्याओं का सामना आप कैसे करतें हैं? आप की प्रतिक्रिया कैसी होती है? आप का व्यवहार कैसा होता है? यह आप के भूतकाल की लम्बी अवधि में प्राप्त अपने अनुभवों, उनसे बनी धारणाओं और विचारों पर निर्भर करता है। अतः अपने आचार-विचार में सकारात्मक परिवर्तन के लिए अबतक बनी अपनी अवधारणाओं में आवश्यक सुधार करना पड़ेगा। यदि यह सुधार या परिवर्तन स्व-विश्लेषण, मूल्यांकन एवं स्वेच्छा से विकसित सही समझ के माध्यम से हो तो यह परिवर्तन दीर्घकालीन और स्थाई होगा।
व्यक्तित्व विकास एक ऐसा नियोजित प्रक्रिया है जो व्यक्तित्व के उन गुणों, विशेषताओं एवं क्षमताओं को विकसित करती है जो जीवन में समय समय पर पैदा होने वाली कठिन से कठिन एवं जटिल से जटिल परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करने, उनसे पैदा होने वाली समस्याओं का सम्यक समाधान करने और बिना किसी तनाव से अपनी रूचि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करके में सहायक होती हैं। व्यक्ति का वाह्य व्यक्तित्व तो उसकी शारीरिक बनावट, भेषभूषा एवं हाव-भाव से प्रदर्शित होता है लेकिन इसका उसकी सफलता से कोई खास संबंध नही होता है। वास्तविक व्यक्तित्व का निर्धारण विभिन्न आतंरिक तत्वों जैसे व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का स्तर, व्यवहार, सोच-विचार, शिक्षा, मौलिक जीवन मूल्यों एवं अन्य विशेषताओं का पता लगाकर किया जाता है। आप का आतंरिक व्यक्तित्व आप को परिभाषित करता है कि आप कौन हैं?आप विभिन्न परिस्थितियों में कैसी प्रतिक्रिया देतें हैं या व्यवहार करतें हैं? आप और अन्य लोगों के व्यवहार का परिणाम क्या होता है
विभिन्न परिस्थितियों में आप की प्रतिक्रिया उन परिस्थितियों से सम्बंधित विचारों एवं सिद्धांतों के बारे आप के ज्ञान, भूतकाल में अर्जित आप का अनुभव और उससे बनी अवधारणा, अपनी शक्तियों और कमजोरियों के बारे में आप की अपनी समझ और स्वेच्छा से अपनी कमजोरियों और गलत धारणाओं को दूर करने के लिए अपनी आंतरिक शक्ति को विकसित करने की आप की इच्छा पर निर्भर करती है।
‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ प्रतिभागियों को अपने दैनिक जीवन के मौलिक एवं जमीनी मुद्दों पर विचारमंथन करने के लिए एक सामूहिक एवं निर्बाध मंच प्रदान करता है और यह प्रक्रिया इन मुद्दों के सभी पहलूओं पर उनकी समझ को बढ़ाती है और सामूहिक चर्चा करके वें आम सहमति बनाते हैं कि सम्बंधित मुद्दों के सन्दर्भ में व्यक्ति का उचित व्यवहार या आचरण क्या होना चाहिए। यदि स्वेच्छा से समूह चर्चा के माध्यम से भूतकालिक अनुभवों से सृजित उनकी अवधारणा एक बार ठीक हो जाती है तो किसी परिस्थिति विशेष के सन्दर्भ में उनके आचार-विचार में सकारात्मक परिवर्तन होने की संभावना काफी बढ़ जायेगी। एक बार व्यक्ति द्वारा किये जा रहे प्रयत्न की गुणवत्ता सुधर जाती है तो कार्य का परिणाम भी अवश्य सुधरेगा चाहे वह क्षेत्र शिक्षा का हो या साक्षात्कार हो या कोई नौकरी या पेशा या उद्यम हो।
जैसा कि ऊपर कहा गया है, व्यक्तित्व विकास एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति द्वारा अपनी कमजोरियों, क्षमताओं, गुणों का आवधिक मूल्याकन किया जाता है और अपने जीवन के उद्देश्य पर गहन विचार करके अपने अन्दर की संभावना को पूरी तरह विकसित किया जाता है। ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ एक स्व-उत्प्रेरित, स्व-संचालित एवं स्व-नियंत्रित व्यक्तित्व विकसित करने और दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृति में कमी लाने में सहायता करता है और प्रतिभागी में अपने व्यक्तित्व का सतत विकास कर पाने की क्षमता विकसित हो जाती है और वह समय समय पर आने वाली समस्याओं का समाधान स्वयं ही कर लेता है। इस isप्रकार वह अपने भाग्य का निर्माता एवं नियंत्रक बन जाता है और दूसरों को दोष देना बंद कर देता है। फिर उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।
प्रश्न संख्या. 6: व्यक्तित्व विकास के क्या लाभ हैं ?
उत्तर : यदि आप हमारे समेकित व्यक्तित्व विकास प्रोग्राम जिसका नाम ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ है में भाग लेने का निर्णय लेते हैं तो इसे सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद आप को निम्न लाभ प्राप्त होगें।
- बिना किसी अतिरिक्त भौतिक संसाधन को प्राप्त किये भी आप अपने जीवन से प्रसन्न एवं संतुष्ट रहेंगें।
- आप का स्वयं एवं अन्य व्यक्तियों के साथ संबंधों में सुधार होगा।
- आप हमेशा नई-नई चीजें सीखने के लिए उत्सुक एवं उत्साहित रहेगें।
- आप अपने दैनिक कार्य स्वयं अपनी इच्छा से रुचि लेकर करेंगें न कि किसी और के कहने या दबाव डालने पर करेंगें।
- जीवन जैसा भी आप के सामने आएगा आप उसका समझदारी से सामना करके आनंद उठाते हुए उसे जीना सीख लेगें।
- अपने परिवेश में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार बिना किसी तनाव के अपने अन्दर उचित बदलाव लाकर उनके साथ अच्छा सामंजस्य बैठा लेने में सफल होगें।
- आप उचित निर्णय लेकर समस्याओं का त्वरित समाधान करने में सक्षम हो जायेगें।
- आप iइस शाश्वत सत्य पर पूरी तरह विश्वास करने लगेगें कि आप का भविष्य आप के अपने कर्मों पर ही निर्भर करता है न कि अन्य किसी व्यक्ति पर।
- स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर बेहतर स्वास्थ्य प्राप्त कर लेगें।
- आप आशा और सकारात्मकता से परिपूर्ण हो जायेगें।
- आप अपने जीवन के लक्ष्य स्वयं निर्धारित करके उन्हें प्राप्त कर पायेगें।
- आप द्वारा अपने कार्य में आतंरिक शांति एवं आनद के साथ सफलता प्राप्त करने की संभावना काफी बढ़ जायेगी।
- आप अन्य लोगों को भी उत्प्रेरित करके उनमें आशा का संचार करेगें।
- जीवन आप के लिए और अधिक रुचिकर बन जाएगा।
- आप के जीवन के सभी पहलूओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- आप स्वयं अपने और अन्य व्यक्तिओं के बारे में ज्यादा जागरूक हो जायेगें।
- आप ज्यादा तार्किक दृष्टि के सोचेगें और स्वयं को आकर्षक ढंग से प्रस्तुत कर पायेगें।
- आप अपने आस-पास एक बेहतर समाज की रचना करने में सक्षम होगें।
- आप अन्य लोगों के लिए काफी रुचिकर एवं आकर्षक हो जायेगें और वें आप में रूचि लेना आरम्भ कर देगें।
- आप की आत्म-प्रतिष्ठा आप की अपनी दृष्टि में बढ़ जायेगी और आप अपने को और अधिक पसंद करने लगेगें और अपनी क्षमताओं में आप का विश्वास बढ़ जायेगा।
- कठिन समय में आप की धैर्य रखने की क्षमता एवं सहनशीलता बढ़ जायेगी।
- आप को अपने जीवन की सही दिशा का ज्ञान हो जाएगा और अपने लक्ष्य आसानी के निश्चित कर पायेगें।
- समय समय पर प्राप्त होने वालें अवसरों का आप द्वारा लाभ उठा पाने की संभावना काफी बढ़ जायेगी।
- आप अज्ञात एवं असफलता के भय से मुक्त हो जायेगें .और किसी कार्य में असफलता आप द्वारा पुनः प्रयास करने में बाधा नहीं उत्पन्न कर पायेगी।
- आप समय समय आने वाली समस्याओं का समाधान आसानी से कर पायेगें।
- आप अपनी सफलता से संतुष्ट नहीं होगें और अपने अन्दर और अधिक सुधार के लिए सतत प्रयास करतें रहेगें।
- आप अपने अंदर छुपी प्रतिभा का पता स्वयं लगा पाने में सफल होगें।
- आप और अधिक कल्पनाशील और सृजनशील हो जायेगें।
- आप का व्यक्तित्व आत्म-नियंत्रित एवं स्वचालित हो जाएगा और अन्य लोगों पर आप की निर्भरता काफी कम हो जायेगी।
- आप अपने भविष्य के निर्धारक एवं नियंत्रक बन जायेगें और अपनी रूचि के अनुसार अपना भविष्य बना पायेगें।
क्या आप अपने व्यवहार में उचित परिवर्तन करके अपने एवं अपने परिवार के अन्य सदस्यों के जीवन में शांति, स्वास्थ्य एवं आनंद के साथ सफलता प्राप्त करने के लिए ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ जो कि एक समेकित व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम है, में स्वयं भाग लेकर या अपने परिवार के अन्य सदस्यों के भाग लेने हेतु नामित करके उपरोक्त सभी लाभ प्राप्त नहीं करना चाहेगें?
प्रश्न संख्या. 7: ‘प्रयास’ की कौन गतिविधि सबसे महत्वपूर्ण है?
उत्तर: ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ जिसमे व्यक्तित्व रेखांकन एवं व्यक्तित्व का नियोजित विकास शामिल है, सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि है। यह एक समेकित व्यक्तित्व चिन्हीकरण एवं विकास कार्यक्रम है जो प्रतिभागियों की सोच एवं व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। किसी भी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसमें यह कार्यक्रम सहायक सिद्ध होता है। अतः यह सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रश्न संख्या 8: ‘प्रयास फाउंडेशन कोर्स’ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिभागियों में निम्न प्रकार की विशेष क्षमताओं का विकास करना है जो जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक एवं स्व-उत्प्रेरित आचरण अपनाने के लिए आवश्यक हैं।
- अपनी सारी ऊर्जा एवं ध्यान को एकाग्र करके किसी एक समय में एक कार्य पर ही लगाने की क्षमता।
- नई घटनाओं, परिस्थितियों, तकनीकों एवं प्रक्रियों को समझने की जिज्ञाशा और उनसे सीख लेने की प्रवृति।
- दूसरों के विचारों को पूरी तन्मयता से सुनकर, उनका तार्किक विश्लेषण करके और उनके परिणाम पर विचार करने के बाद अपने विचार दूसरों के सामने तार्किक परन्तु शालीन ढंग से रखने की क्षमता।
- अपनी अभिरुचि एवं रुझान के अनुरूप पारिवारिक, संस्थागत एवं सामाजिक जीवन एवं अपने कार्य या पेशे में सफलता प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त करने की दक्षता।
- अपने कार्य या पेशे में सफलता प्राप्त करने में सहायक परिवेश निर्मित कर पाने की क्षमता।
- उत्कृष्ट उत्पादकता प्राप्त करने के लिए अपनी ऊर्जा और समय का बिना अपव्यय किये अपने सिमित समय का सदुपयोग करने की क्षमता।
- किसी भी कार्य के लिए पूरे प्रयास करने के बाद प्राप्त परिणाम को सहर्ष स्वीकार करने कि प्रवृति।
उक्त क्षमताओं के विकसित हो जाने के बाद व्यक्ति का व्यक्तित्व अन्य लोगों के लिए उत्प्रेरक हो जाता है। दूसरे शब्दों में यह कार्यक्रम प्रतिभागियों के वाह्य- नियंत्रित व्यक्तित्व को स्व-उत्प्रेरित, स्व-संचालित एवं स्व-नियंत्रित व्यक्तित्व में परिवर्तित कर देता है जो उनके जीवन की चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करके आनंदमय एवं शांतिमय जीवन जीने में सहायक सिद्ध होता है। इसमें कोर्स में प्रवेश के लिए अभ्यर्थी की आर्थिक स्थिति आड़े नहीं आती है क्योकि इसका शुल्क ‘कोई लाभ नही कोई हानि नहीं’ और ‘अंतर-सहायता’ के दो सिद्धांतों पर निश्चित की जाती है। 30% प्रतिभागी अपनी भुगतान क्षमता के अनुसार शुल्क देकर इसका लाभ उठा सकतें हैं।